छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं, जाने छठ पूजा की कथा
छठ का पहला अर्घ्य षष्ठी तिथि को दिया जाता है। यह अर्घ्य अस्ताचलगामी सूर्य को दिया जाता है। इस समय जल में दूध डालकर सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य दिया जाता है। माना जाता है कि सूर्य की एक पत्नी का नाम प्रत्यूषा है और ये अर्घ्य उन्हीं को दिया जाता है।इस बार छठ का पहला अर्घ्य आज (19 नवंबर को) दिया जाएगा। छठ पूजा का त्योहार 17 नवंबर से शुरू हो रहा है. इस साल छठ पूजा 19 नवंबर को होगी. इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. 20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और इसी के साथ छठ पूजा का समापन व व्रत पारण किया जाएगा.
सनातन धर्म में छठ पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। इस पर्व की खास रौनक बिहार, झारखंड, बंगाल और उत्तर प्रदेश में नजर आती है। छठ का त्योहार हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस दौरान व्रती 36 घंटों का निर्जला व्रत रखते हैं और सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठ पूजा में मुख्य रूप से सूर्य देव और छठी मैया की अराधना की जाती है। छठ पूजा में जो शाम के अर्घ्य को संध्या अर्घ्य और सुबह के अर्घ्य को उषा अर्घ्य कहा जाता है।
छठ का पहला अर्घ्य षष्ठी तिथि को दिया जाता है। यह अर्घ्य अस्ताचलगामी सूर्य को दिया जाता है। इस समय जल में दूध डालकर सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य दिया जाता है। माना जाता है कि सूर्य की एक पत्नी का नाम प्रत्यूषा है और ये अर्घ्य उन्हीं को दिया जाता है।इस बार छठ का पहला अर्घ्य आज (19 नवंबर को) दिया जाएगा। छठ पूजा का त्योहार 17 नवंबर से शुरू हो रहा है. इस साल छठ पूजा 19 नवंबर को होगी. इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. 20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और इसी के साथ छठ पूजा का समापन व व्रत पारण किया जाएगा.
अर्घ्य देने के लिए एक लोटे में जल लेकर उसमें कुछ बूंदें कच्चा दूध मिलाएं। इसी पात्र में लालचन्दन, चावल, लालफूल और कुश डालकर प्रसन्न मन से सूर्य की ओर मुख करके कलश को छाती के बीचों-बीच लाकर सूर्य मंत्र का जप करते हुए जल की धारा धीरे-धीरे प्रवाहित कर भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर पुष्पांजलि अर्पित करना चाहिए। इस समय अपनी दृष्टि को कलश की धारा वाले किनारे पर रखेंगे तो सूर्य का प्रतिबिम्ब एक छोटे बिंदु के रूप में दिखाई देगा एवं एकाग्रमन से देखने पर सप्तरंगों का वलय नजर आएगा। अर्घ्य के बाद सूर्यदेव को नमस्कार कर तीन परिक्रमा करें। टोकरी में फल और ठेकुवा आदि सजाकर सूर्यदेव की उपासना करें। उपासना और अर्घ्य के बाद आपकी जो भी मनोकामना है, उसे पूरी करने की प्रार्थना करें। प्रयास करें कि सूर्य को जब अर्घ्य दे रहे हों, सूर्य का रंग लाल हो। इस समय अगर अर्घ्य न दे सके तो दर्शन करके प्रार्थना करने से भी लाभ होगा।
वैदिक पंचांग के अनुसार छठ के तीसरे दिन अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। 19 नवंबर 2023 को शाम 05 बजकर 26 मिनट पर सूर्यास्त होगा।
ऊँ सूर्याय नम:, ऊँ आदित्याय नम:, ऊँ नमो भास्कराय नम:। अर्घ्य समर्पयामि।।
छठ का पावन त्योहार हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। लेकिन इससे जुड़े रीति-रवाज और परंपराएं चतुर्थी तिथि से ही शुरू हो जाती हैं। यह चार दिवसीय पर्व मुख्य रूप से बिहार के लोगों द्वारा मनाया जाता है। इस दौरान सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। कहते हैं जो भक्त सच्चे मन से छठ पूजा करता है उसके सारे दुख दूर हो जाते हैं। यहां देखिए छठ पूजा की व्रत कथा।
पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी दोनों संतान न होने की वजह से दुखी रहते थे। एक समय उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। यज्ञ की समाप्ति पर महर्षि ने मालिनी को खीर खाने के लिए दी। खीर का सेवन करने से मालिनी गर्भवती हो गई और ठीक 9 महीने बाद उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन दुर्भाग्य से उसका पुत्र मृत जन्मा था। अपनी मृत संतान को देखकर राजा और भी ज्यादा दुखी हो गए और उन्होने आत्महत्या करने का मन बना लिया, परंतु जैसे ही राजा ने अपने प्राण त्यागने की कोशिश की उनके सामने भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हो गईं।
माता ने राजा को अपना परिचय बताते हुए कहा कि मैं षष्ठी देवी हूं और मैं लोगों को संतान होने का सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो सच्चे मन से मेरी पूजा करते हैं मैं उनकी समस्त मनोकामना भी पूर्ण करती हूं। यदि राजन तुम मेरी विधि विधान से पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न अवश्य प्रदान करूंगी। देवी के कहे अनुसार राजा प्रियव्रत ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को देवी षष्ठी की पूरे विधि विधान से पूजा की। इस पूजा के फलस्वरूप रानी मालिनी फिर गर्भवती हुई और उन्होंने एक संदुर पुत्र को जन्म दिया। कहते हैं तभी से छठ का पावन पर्व मनाये जाने की परंपरा शुरू हो गई।