रक्षा बंधन का आधुनिक समय में बदलते मायने
रक्षा बंधन का शाब्दिक अर्थ रक्षा करने वाला बंधन मतलब धागा है। इस पर्व में बहनें अपने भाई के कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और बदले में भाई जीवन भर उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं। रक्षा बंधन को राखी या सावन के महिने में पड़ने के वजह से श्रावणी व सलोनी भी कहा जाता है। यह श्रावण माह के पूर्णिमा में पड़ने वाला हिंदू तथा जैन धर्म का प्रमुख त्योहार है।
रक्षा बंधन का शाब्दिक अर्थ रक्षा करने वाला बंधन मतलब धागा है। इस पर्व में बहनें अपने भाई के कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और बदले में भाई जीवन भर उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं। रक्षा बंधन को राखी या सावन के महिने में पड़ने के वजह से श्रावणी व सलोनी भी कहा जाता है। यह श्रावण माह के पूर्णिमा में पड़ने वाला हिंदू तथा जैन धर्म का प्रमुख त्योहार है।
रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम व सम्मान का त्यौहार है प्रत्येक वर्ष के सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है इस दिन बहनें सुबह उठकर स्नान करके तैयार होकर उसके बाद वह आरती की थाली तैयार करते हैं उस थाली को बड़े प्यार से सजाती हैं उसमें अक्षत रोली चंदन दीपक राखी इन सब से वह थाली तैयार करती है उसके बाद भाई की आरती उतार कर रोली लगाकर भाई की कलाई में राखी बांधी है और भाई अपनी बहन को यह वचन देता है कि वह हमेशा उसकी रक्षा करें और भाई अपनी बहन को गिफ्ट देता है अगर छोटा भाई है तो बहन अपने भाई को गिफ्ट देती है साथी भाई का मुंह मीठा कर आती है भाई को जब भी बहन राखी बनती है उसकी यही कामना होती है कि उसका भाई हमेशा उसके साथ रहें और हमेशा उस पर अपना प्यार और इसने बरसात आ रहे।
रक्षा बंधन का इतिहास
एक बार देवताओं और असुरों में युद्ध आरंभ हुआ देवताओं को युद्ध में हर के बाद सारा राज पाठ गवना पड़ा अपना राज पाठ वापस लेने के उद्देश्य से देवताओं के राजा इंद्र देव गुरु बृहस्पति से मदद की गुहार करने लगे, उसके बाद देव गुरु बृहस्पति ने कई मंत्र से सावन मास की पूर्णिमा के दिन प्रातः काल में रक्षा सूत्र बांधा इस पूजा के बाद प्राप्त सूत्र को हाथ में बांध लिया जिसके बाद इंद्र को विजय प्राप्त हुई तब से रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है।
आधुनिक समय में रक्षाबंधन के बदलते मायने
पुराने समय में घर की छोटी बेटी के द्वारा अपने पिता, चाचा मामा, ताऊ को राखी बनती थी और उसके बाद अपने गुरुओं को रक्षा सूत्र बांधा जाता था और उसके बाद यजमान को रक्षा सूत्र बांधा जाता था।
इसी के साथ बदलते समय के चलते पूजा करने की पद्धति भी बदलती गई लोग इस पर्व में ज्यादा रुचि ना लेकर बस सोचते हैं कि जल्दी राखी बांधी कि मैं जाऊं पहले के समय में लोग अपने परिवार के साथ त्यौहार मैं समय बिताते और परिवारजनों से बातें करते थे जो कि अब उनके पास समय ही नहीं अगर भाई दूर है तो उसको राखी पोस्ट कर दी जाती है और इसके अतिरिक्त मोबाइल पर ही रक्षाबंधन की शुभकामनाएं दे दी जाती है।